पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/३

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प्रकाशकीय

आचार्य चतुरसेन का कहानी-साहित्य में जो विशिष्ट स्थान है उससे हिन्दी के पाठक भली भांति परिचित हैं। उन्होंने १९०६ से लिखना आरम्भ किया था और अन्त तक लिखते रहे। आधी सदी के अपने दीर्घकाल में उन्होने लगभग साढ़े चार सौ कहानियां लिखीं, जिनमें अधिकांश अपने कला-वैशिष्टय के लिए सुविख्यात हो गई। शैली की दृष्टि से तो आपका नाम हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कहानी-लेखकों में आदर से लिया जाता है।

आचार्यजी की कहानियों के दो-तीन संग्रह बहुत पहले निकले थे, परन्तु उनका सारा कहानी-साहित्य एक जगह संकलित नहीं हो पाया था। यह एक बहुत बड़ा "अभाव था, जिसकी पूर्ति के.लिए आचार्यजी के ही जीवन-काल में उनके समग्न कहानी-साहित्यको पुस्तक-माला के रूप में प्रकाशित करने की एक रूपरेखा हमने बनाई थी। इतना ही नही, कहानियों का संकलन-सम्पादन भी उनकी देख-रेख मे शुरू हो गया था और इस माला के लिए उन्होने स्वयं 'कहानीकार का वक्तव्य' भी लिखा था (जो इस सग्रह के प्रारम्भ में दिया गया है); किन्तु दुर्याग्यवश इस बीच नका देहावसान हो गया।

सम्प्रति, हमारे सामने पहली आवश्यकता यह थी कि लेखक का सम्पूर्ण कहानी साहित्य प्रामाणिक रूप से एक जगह उपलब्ध हो सके, जिससे हिन्दी कथा-साहित्य के पाठक आचार्यजी की कहानी-कला का रसास्वादन और यथेष्ट अध्ययन कर सकें। इसके लिए आचार्यजी के निर्देशों के अनुसार, उनके छोटे भाई श्री चन्द्रसेनजी ने अथक परिश्रम से इस महान लेखक की, पत्र पत्रिकाओं व पाण्डुलिपियों में बिखरी हुई सामग्री को संकलित तथा सम्पादित किया है, जिसे हम क्रमशः पुस्तक