पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/३९

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अबुलफज़ल-वध ३६ कर रही थी। कमरे मे केवल एक अल्पवयस्क, सुन्दर दास मोरछल लिए खड़ा था। नकीब ने आकर अर्ज की, "खुदाबद, राजा वीरसिंह बुदेला कदमबोसी को हाज़िर है।" शाहजादे ने उतावली से कहा, "उन्हे ले आओ न।" राजा वीरसिंह ने सम्मुख आकर कोनिश की । शाहजादे ने सम्भ्रात उठकर राजा साहब को छाती से लगा लिया, और बराबर बैठाकर कहा, "राजा साहब, आपकी बहादुरी की तारीफ बहुत सुनी है, तभी दोस्ती की ख्वाहिश थी, वह आज पूरी हुई। आप जो मेरे पास तशरीफ ले आए, इससे मेरी ही इज्जत अफजाई हुई है। अब आप दरगाह को अपना घर समझें, और ऐसा कोई काम बताकर मुझे ममनून करें, जो इस बात को साबित करे कि मैं आपका सच्चा दोस्त बनने का कितना ख्वास्तगार हूं।" राजा वीरसिंहदेव सलीम की इतनी चापलूसी और उत्सुकता देखकर दंग रह गए, कुछ भी न समझ सके। उन्होने कहा, "हजरत शाहजादा, आप मुझ नाचीज को क्यो शरमिंदा करते हैं ?" मैं तो आपकी पनाह आया हूं। बादशाह और खास मेरे बड़े भाई ने मेरे साथ दगा की है। फुसलाकर किला खाली करा लिया और धोखा देकर रात को वध करने की चेष्टा की। इन दोस्तो और इस तलवार के बल से जान बचाकर भागा हूं। मिरज़ा गौर ने मुझे दरगाह में आने की सलाह दी है। शाहजादा मुझ शरणागत की इतनी आवभगत करेगे, मैंने यह सोचा भी न था।" सलीम ने कहा, "राजा साहब, आप मेरी आंखे और भुजा हैं। आप मेरे सलाह- कार और दोस्त हैं । मैं आपके लिए जान भी दूगा। कहिए, आप क्या चाहते है !" वीरसिंह की आंखो से आसू निकल आए। उन्होनेक्षण-भर शाहजादेकी तरफ देखा, और कहा, "शाहजादा, तब यह सेवक भी रक्त की एक-एक बूद आपको देगा । मेरे बादशाह शाहनशाह अकबर नही आप हैं। आज से आप मेरे मालिक सलीम ने सिर से पगड़ी उतारकर कहा, "मालिक सबका खुदा है, मैं आपका भाई, छोटा भाई हू, और दिली दोस्त है। यह पगड़ी लीजिए, और अपनी मुझे दीजिए। आपने मुझे बादशाह कहा है, मैं आपको बुन्देलखण्ड का महाराज कहता महाराज ने उठकर पगड़ी आदरपूर्वक ले ली। सलीम भी उठ खड़ा हुआ