पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/६०

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६० प्रबुद्ध गोप-कन्या नन्दा ने दया कर उन्हे खीर दी, जिससे उनके शरीर मे बल का सचय हुआ। वे तपश्चर्या छोड़कर धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगे। अन्तत वहां से भी चल दिए। बोधि-वृक्ष निकट आ गया। मुनि ने उसे देखा । पृथ्वी कम्पायमान, होने लगी। जगत् में प्रकाश छा गया। मार-जो विषयो का पोषक, और मृत्यु का प्रेरक है, तथा सत्य का शत्रु है-आया। उसकी तीनो लुभावनी पुत्रिया अपनी राक्षसी सेना के साथ थी। सम्मुख आए मार ने भयानक गर्जना की। मुनि बोधि- वृक्ष के नीचे शान्त बैठे रहे । उसकी तीनो पुत्रियों ने उनपर बाण फेके । पर प्रबल जितेन्द्रिय के हृदय में कोई तामसी इच्छा न उत्पन्न हुई। तब समस्त दृष्ट आत्माओ ने उनपर एकसाथ आक्रमण किया, पर नारकीय ज्वालाए सुगन्धित पवन के झोंकों में परिवर्तित हो गई, वज्रपात ने कमल पुष्प का रूप धारण कर लिया। मार पराजित होकर भागा । एक अलौकिक तेज दिशाओ मे व्याप्त हो गया। मुनि सिद्धार्थ ध्यान-मग्न थे। वे ससार की विपत्तियो, कप्टो और दुष्कर्मो के बुरे परिणामो को प्रत्यक्ष देख रहे थे । वे सोच रहे थे-ससार की यह कैसी विचित्र गति है ? वे एकाएक बोल उठे-धर्म सत्य है, धर्म ही मनुष्य को अज्ञान, पाप और दुःखो से बचाता है । जीवन-विकास की बारह कड़िया है, जिन्हे द्वादश निदान कहते हैं । सत्यचतुष्टय ये है-(१) दुःख, (२) दुःख का कारण, (३) दु.खों की समाप्ति, (४) अष्टाग मार्ग (जिनपर चलने से दुखो का नाश होगा)। मुनि सिद्धार्थ इस सिद्धान्त को प्राप्त करके बुद्ध हो गए। वे बोले-धन्य है वह जिसने धर्म को समझ लिया । धन्य है वह जो किसीको हानि नहीं पहुंचाता। धन्य है वह जिसने पापो पर विजय प्राप्त की है वह वही महापुरुष है--ज्ञानी है, बुद्ध है। बुद्ध इन सिद्धान्तो की प्राप्ति से उदीयमान तेज से दिप रहे थे। शान्त और गम्भीर मुद्रा में बैठे थे। दो व्यक्तियो ने आकर उनके चरणों मे सिर रख दिया। "हे मनुष्यो ! तुम्हारा कल्याण हो! तुम कौन हो?" "हे प्रभु, मेरा नाम तपुस है और इसका मल्लिका; हम व्यापारी हैं। यह चावल की रोटी और शहद हमारे पास है; इसे ग्रहण कर कृतार्थ करे।"