पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/६५

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रोकना मत । सारिपुत्र मोद्गल्यायन ने विनम्र होकर कहा-जैसी भगवान् की आज्ञा। . . वह मलिनवस्त्रा और धूलि-धूसरितवेशा, केशविहीना यशोधरा, मूर्तिमती, वियोग और विषाद की छाया चुपचाप खड़ी एकटक उन्हे देख रही थी। वह इस बात को भूल गई कि उसका पति अब जगद्गुरु और सत्य का अन्वेषक है। वह सम्मुख आते ही बुद्ध के पैर पकड़, फूट-फूटकर रोने लगी। जब वह प्रकृतिस्थ हुई तब उसने श्वसुर को देखा और हट गई। राजा ने कहा-यह उसका मनोवेग नही है, हृदयस्थ प्रकृत प्रेम के स्रोत का प्रवाह है। जब उसे ज्ञात हुआ कि तुमने केश काट डाले हैं, तब उसने भी इसका अनुसरण किया। जब उसने सुना कि तुमने सभी भोजन त्याग दिए, तब उसने भी सब कुछ छोड़ दिया। यह मृत्पात्रो मे खाती और भूमि पर सोती है। उससे बड़े-बड़े राजकुमारो ने विवाह की प्रार्थना की, तब उसने कहा-मेरे स्वामी का मुझपर पूर्ण अधिकार है, और मैं अब भी उनके चरणो की दासी हूँ। बुद्ध ने करुण एव गम्भीर स्वर मे कहा-कल्याण बुद्धे ! तुम धन्य हो। तुम बड़ी पुण्यात्मा हो। तुम्हारी पवित्रता, सुशीलताऔर भक्ति ने मुझे लाभ पहुंचाया है और मैं सत्य-ज्ञान को उपलब्ध कर चुका हू । तुम्हारा हार्दिक दुख और शोक अवर्णनीय है। परन्तुं तुमने जो आध्यात्मिक सम्पत्ति अपने श्रेष्ठ और शुद्धाचरण से प्राप्त की है, वह तुम्हारे समस्त दुखो को आनन्द मे परिवर्तित कर देगी। यशोधरा ने धैर्य धारण कर मन के वेग को रोका । अब वह समझ गई कि यह महापुरुष मेरा पति नही, जगत् का महान् धर्मगुरु है। उसने दृढता से कहा- हे स्वामी ! पिता की सम्पत्ति पर पुत्र का अधिकार होता है । यह आपका पुत्र है। आपके पास चार खजाने है, उन्हें मैंने नही देखा; पर आप उन्हे अपने पुत्र को प्रदान करे । इतना कहकर उसने सप्तवर्षीय बालक को बुद्ध के चरणो में डाल . दिया। बुद्ध ने कहा-तुम्हारा मातृत्व धन्य है । तुम्हारे पुत्र को मैं ऐसा द्रव्य नदूगा जो नाशवान् हो और जो उसे शोक और चिन्ता में डाले। मै उसे चारो सत्य का भेद समझाऊंगा, यदि उसमे उन्हें धारण करने की योग्यता हुई। बालक ने कहा-हे पिता ! मैं योग्य बनूगा। "वत्स ! तुम्हारा कल्याण हो! तुम मेरे साथ आओ।"