पृष्ठ:बिखरे मोती.pdf/१०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
[ कदम्ब के फूल
 



सकते हो तो क्या मैं तुम्हारी इच्छित वस्तु तुम्हें नहीं दे सकती ?"

"नहीं भौजी न दे सकोगी; फिर क्यों नाहक कहती हो?"

अब तुम्हीं न लेना चाहो तो बात दूसरी है; पर मैंने तो कह दिया कि तुम जो माँगोगे मैं वही दूंगी ।”

"अच्छा अभी जाने दो, समय आने पर माँग लूंगा”कहते हुए मोहन ने अपने घर की राह ली । दूर से आती हुई भामा की सास ने मोहन को कुछ दोने में लिए हुए घर के भीतर जाते हुए देखा था। किन्तु वह ज्योंही नज़दीक पहुँची मोहन दूसरे रास्ते से अपने घर की तरफ़ जा चुका था। वे मोहन से कुछ पूछ न सकी; पर उन्होंने यह अपनी आँखों से देखा था कि मोहन कुछ दोने में लाया है; किन्तु क्या लाया है यह न जान सकी ।


[ २ ]

घर आते ही उन्होंने बहू से पूछा-"मोहन दोने में ।क्या लाया था" ? भामा मन ही मन मुस्कुराई बोली-मिठाई ।बुढ़ियां क्रोध से तिलमिला उठी; बोली-“इतना खाती

८६