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बिखरे मोती ]
 

है, हाँ मंगवाती हूँ; खाती हूँ ! अपने आदमी की कमाई खाती हूँ; कुछ तुम्हारे बाप का तो नहीं खाती ? जब मैंने कहा कि तेरा आदमी है तो मेरा भी तो बेटा है, उसकी कमाई में मेरा भी हक़ है तो कहती है कि तुम्हारा हक़ जब था तब था, अब तो सब मेरा है। ज्यादः बोलोगी तो मार के घर से निकाल दे दूँगी। तो बाबा तेरी औरत है; तू ही उसकी मार सह; मैं मांग के पेट भले ही भर लू; पर बहू के हाथ की मार न खाऊँगी ।'

गंगाप्रसाद अब न सह सके,बोले- “वह मुझे मारेगी माँ! मैं ही न उसके हाथ-पैर तोड़ कर डाल दूंगा। कहते हुए वे हाथ की लकड़ी उठाकर बड़े गुस्से से भीतर गये । भामा को डाँटकर पूछा-क्या मँगाया था तुमने मोहन से?

गंगाप्रसाद के इस प्रश्न के उत्तर में "कदम के फूल थे, भैया !” कहते हुए मोहन ने घर में प्रवेश किया तब भामा ने दोना उठाकर गंगप्रसाद के सामने रख दिया था। दोने में आठ दस पीले-पीले गोल-गोल बेसन के लड्डुओं की तरह कदम्ब के फूलों को देखकर गंगाप्रसाद को हँसी आ गई।

मोहन ने दोने में से एक फूल उठाकर कहा-“कितना सुन्दर है यह फूल, भौजी” !

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