घड़ी निकाल कर देखते हुए रामकिशोर बोले-“अभी
साढ़े नौ ही तो बजे हैं मुझे कचहरी भी तो जाना है न ?”
मुन्नी की माँ तड़प कर बोली-“जरूर तुमने सुन लिया होगा ? दुलारी बहू ने नौ कहा था और तुम साढ़े नौं पर पहुँच गये तो इतना ही क्या काम किया ? तुम उसकी बात कभी झूठी होने दोगे ? मैं तो कहती हूं किं इस घर में नौकर-चाकर तक का मान मुलाहिज़ा है, पर मेरा नहीं सब सच्चे और मैं झूठी, कहके मुन्नी की माँ जोर से रोने लगी।
-"मैं तो यह नहीं कहता कि तुम झूठी हो; घड़ी ही गलत हो गई होगी ? फिर इसमें रोने की तो कोई बात नहीं है"।
कहते-कहते रामकिशोर जी स्नान करने चले गए।
वे अपनी स्त्री के स्वभाव को अच्छी तरह जानते थे ।
किशोरी के साथ वह कितना दुव्र्यवहार करती है, यह भी
उनसे छिपा न था । जरा-जरा सी बात पर किशोरी को
मार देना और गाली दे देना तो बहुत मामूली बात थी ।
यही कारण था कि बहू के प्रति उनका व्यवहार बड़ा ही
आदर और प्रेम पूर्ण होता । किशोरी उनके पहिले विवाह