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[ किस्मत
 

की पत्नी के एक मात्र बेटे की बहू थी । विवाह के कुछ ही दिन वाद निर्दयी विधाता ने बेचारी किशोरी का सौभाग्य-सिन्दूर पोछ दिया। उसके मायके में भी कोई न था । वह अभागिनी विधवा सर्वथा दया ही की पात्र थी। किन्तु ज्यों-ज्यों मुन्नी की माँँ देखतीं कि रामकिशोर जी का व्यवहार बहू के प्रति बहुत ही स्नेह-पूर्ण होता है त्यों-त्यों किशोरी के साथ उनका द्वेय भाव बढ़ता ही जाता। रामकिशोर अपनी इस पत्नी से बहुत दबते थे; इन सब बातों को जानते हुए भी वह किशोरी पर किए जाने वाले अत्याचारों को रोक न सकते थे। सौ की सीधी बात तो।यह थी कि पत्नी के खिलाफ कुछ कह के वे अपनी खोपड़ी के बाल न नुचवाना चाहते थे। इसलिए बहूधा वे चुप ही रह जाया करते थे।

आज भी जान गए कि कोई बात जरूर हुई है और किशोरी को ही भूखी-प्यासी पड़ा रहना पड़ेगा। इसलिए कचहरी जाने से पहिले किशोरी के कमरे की तरफ़ गए और कहते गए कि “भूखी न रहना बेटी ! रोटी ज़रूर खा लेना नहीं तो मुझे बड़ा दुःख होगा।"

“रोटी जरूर खा लेना नहीं तो मुझे बड़ा दुःख होगा।"

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