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बिखरे मोती ]
 


रामकिशोर का यह वाक्य मुन्नी की मां ने सुन लिया। उनके सिर से पैर तक आग लग गई, मन ही मन सोचा ।“इस चुडैल पर इतना प्रेम ! कचहरी जाते-जाते उसका लाड़ कर गए; खाना खाने के लिए खुशामद कर.ए; मुझसे बात करने की भी फुर्सत न थी ? खायगी खाना, देखती हूँ, क्या खाती है ?अपने बाप को हाड़ !”

मुन्नी की मां ने खाना खा चुकने के बाद, सब की सब खाना उठा कर कहारिन को दे दिया और चौका उठाकर बाहर चली गई।किशोरी जब चौके में गई तो सब बरतन खाली पड़े थे । भात के बटुए में दो तीन कण चावल के लिपटे थे। किशोरी ने उन्हीं को निकाल कर मुँह में डाल लिया और पानी पी कर अपनी कोठरी में चली आई।

[ ३ ]

आज रामकिशोर जी कचहरी में कुछ काम न होने के कारण जल्दी ही लौट आए। मुन्नी की मां बाहर गई थी। घर में पत्नी को कहीं न पाकर वे बहू की कोठरी की तरफ़ गए। बहू की दयनीय दशा को देखकर उनकी आँखें भर आई । आज चन्दन जीता होता तब भी क्या इसकी यही दशा रहती ? अपनी भीरुता पर उन्होंने अपने

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