पृष्ठ:बिखरे मोती.pdf/११७

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[ किस्मत

आपको न जाने कितना विक्कारा। उनकी धोती कई जगह से फटकर सी जा चुकी थी। उस धोती से लज्जा निवारण भी कठिनाई से ही हो सकती थी । बिछौनों के नाम से खाट पर कुछ चीथड़े पड़े थे। जमीन पर हाथ को तकिया लगाए, वह पड़ी थी; उसको झपकी सी लग गई थी। पैरों की आहट पाते ही वह तुरन्त उठ बैंठी । रामकिशोर जी को सामने देखते ही संकोच से ज़रा घूँघट सरकाने के लिए उसने ज्योंही धोती खींची, घोती फट गई; हाथ का पकड़ा हुआ हिस्सा हाथ के साथ नीचे चला आया। राम किशोर ने उसका कमल सा मुरझाया हुआ चेहरा और डब-डबाई हुई आँखें देखी । उनका हृदय स्नेह से कातर हो उठा; वे ममत्व भरे मधुर स्वर में बोले–“तुमने खाना खा लिया है बेटी !”<

किशोरी के मुंह से निकल गया नहीं। फिर वह सम्हल कर बोली “खा तो लिया है बाबू ।”

रामकिशोर मुझे तो ऐसा मालूम होता है कि तुमने नहीं खाया है। किशोरी कुछ न बोली उसका मुंह दूसरी और था,आँसु टपक रहे थे और वह नाखून से धरती खुरच रही थी।<br


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