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भूमिका ]


हैं। हाँ, केवल विषय और भाव ऐसी चीजें हैं जिन्हें, कोई भी लेखक अपनी बपौती नहीं कह सकता और किसी लेखक को उन्हें गढ़ने का कष्ट नहीं उठाना पड़ता । "सच बोलना बहुत अच्छा है-मनुष्य को सदा सच बोलना चाहिए ।" इस विषय पर न जाने कितने प्लाट गढ़े जा चुके है - और न जाने अभी कितने गढ़े जा सकते हैं । प्रेम, घृणा, सज्जनता, दयालुता, परोपकार इत्यादि विषयोंं पर हज़ारोंं प्लाट बन चुके हैं और अभी हज़ारों बन सकते हैं । परन्तु वे सब प्लाट अच्छे नहीं हो सकते । प्लाट वही अच्छा होगा जिसमें कुछ चमत्कार होगा, कुछ नवीनता होगी । जिसमें प्रतिपादित विषय पर किसी ऐसे नये पहलू से प्रकाश डाला जाय जिससे कि वह विषय अधिक आकर्षक, अधिक मनोरम तथा अधिक प्रभावोत्पादक हो जाय । लेखक की प्रतिभा तथा लेखक की कला इसी पहलू को ढ़ूँढ़ निकालने पर निर्भर है ।

अब रहा चरित्र-चित्रण सो उसमें भी प्रतिभाशाली लेखक नवीनता तथा अनोखापन ला सकता है । नित्य जो चरित्र देखने को मिलते हैं,उन चरित्रों से भिन्न कोई ऐसा अनोखा चरित्र उत्पन्न करना जिसे देखकर विज्ञान के पाठक फड़क उठे--उनके हृदय में यह बात पैदा हो कि

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