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बिखरे मोती ]
 



जायंगे । महीना, पन्द्रह दिन का काम है मनोहर ! खूब अच्छा रहेगा । खूब पैसे भी मिलेंगे। मैं तुम्हें भी दिया करूंगी; पर इतना वादा करो कि जब तक बापू न लौट करे आवे; तुम रोज मेरे साथ डाँड़ चलायो करो ।

——" यह कौन सी बड़ी बात है तिन्नी ? यदि तू मान जा तो मैं तो तेरे साथ जीवन भर डांड़ चलाने को तैयार हूँ।”

"तो जैसे मैंने कभी इन्कार किया हो, नेकी और पूछ पूछ-? तुम मेरा डाँड़ चलाओ और मैं इन्कार कर दूंगी”

——"तो, तिन्नी तु मुझसे विवाह क्यों नहीं कर लेती ? फिर हम दोनों जीवन भर साथ-सथ डांड़ चलाते रहेंगे।

क्षणभर के लिए तिन्नी के चेहरे पर लज्जा की लाली दौड़ गई। किन्तु तुरंत ही वह सम्हल कर बोली——कहने के लिए तो कह गये मनोहर ! किन्तु आज मैं विवाह के लिए तैयार हो जाऊँ तो ?

——"तो मैं खुशी के मारे पागल हो जाऊँ ।” ——"फिर उसके बाद ?"

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