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बिखरे मोती ]
 


इस ओर तिन्नी का ध्यान ही न था । किन्तु राजा साहब से पुत्र की मानसिक अवस्था छिपी न रही। युवा काल में उनके जीवन में भी कई बार ऐसे मौके आ चुके थे।

अब कृष्णदेव प्रायः प्रति दिन ही जल-विहार के लिए नौका पर आते और डांड चलाने का काम बहुधा तिन्नी ही किया करती है। कृष्णदेव के मूक प्रेम और आकर्षण ने तिन्नी को भी उनकी तरफ बहुत कुछ आकर्षित कर लिया था। जिस समय कृष्णदेव नौका पर आते, उस समय अन्य मछुओं के रहते हुए भी तिन्नी स्वयं ही नौका चलाती ।

राजा साहब से कुछ छिपा न था। कुमार रोज जल-विहार के लिए जाते हैं, और तिन्नी ही नाव चलाया करती है, यह राजा साहब ने सुन लिया था। अतएव बात को इससे अधिक न बढ़ने देने के अभिप्राय से राजा साहब बिना शिकार खेले ही एक दिन अपनी रियासत को लौट गये । जाने को तो पिता के साथ कृष्णदेव भी गये; किन्तु उनका हृदय मछुए के झोपड़े में तिन्नी के ही पास छूट गया था। रियासत पहुँच कर कृष्णदेव सदा उदास और न जाने किन विचारों में निमग्न करते । शायद

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