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बिखरे मोती ]
 

बतला रही थी। उनका स्वास्थ्य दिनों-दिन गिरता जा रहा था।

पिता से पुत्र की बीमारी छिपी न थी। वे सब जानते थे; किन्तु वे चाहते यह थे कि बात किसी प्रकार दबी की दबी ही रह जाय; उन्हें बीच में न पड़ना पड़े। कृष्णदेव उनका इकलौता पुत्र था। पुत्र की चिन्ता उन्हें रात-दिन बनी रहती थी । तिन्नी के अनिन्दनीय रूप और चातुर्य ने राजा साहब को आकर्षित न किया हो, सो बात न थी। किन्तु थी तो वह आखिर मछुए की ही बेटी । राजा साहब उससे कृष्णदेव का विवाह करते भी तो कैसे ?

एक दिन राजा साहब कृष्णदेव के कमरे में गये । उस समय वह सोए हुए थे। आँखों के पास जैसे रोते-रोते गड़े से पड़ गये थे। चेहरा पीला-पीला और शरीर सूख कर जैसे काँटा सा हो रहा था । जमीन पर ही एक चटाई के ऊपर बिना तकिए के मखमली बिछौनों पर सोने वाला उनका दुलारा कृष्णदेव न जाने किस चिन्ता में पड़ा- पड़ा सो गया था। राजा साहब की आँखो में आँसू आ गये थे । वे कुछ न बोलकर चुपचाप कृष्णदेव के कमरे से बाहर निकल आए ।

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