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[ मछुआ की बेटी
 


सम्मान करने के उपरान्त राजा साहब ने मछुए को सम्बोधन करके कहा-चौधरी हमने तुम्हें किसलिए बुलाया है कदाचित् तुम नहीं जानते ।

चौधरी भय से कांप उठे; हाथ जोड़कर बोले-मैं तो महाराज का गुलाम हैं, सदा............।राजा साहब बात काटते हुए बोले-हम तुम्हारी इस कन्या को राजकुमार के लिए चाहते हैं।

तिन्नी ओठों के भीतर मुरकुराई, और चौधरी आश्चर्य से चकित हो गये । एक बार राजा साहब की ओर और फिर उन्होंने तिन्नी की ओर देखा । सहसा चौधरी को इस बात पर विश्वास न हुआ । कहाँ में एक साधारण मछुआ और कहाँ वे एक रियासत के राजा ! हमारे बीच में कभी रिश्तेदारी भी हो सकती है ? फिर न जाने क्या सोचकर भय-विह्वल चौधरी ने हाथ जोड़ कर कहा-महाराज यह कन्या मेरी नहीं है।

राजा साहब चौंक उठे; आश्चर्य से उन्होंने चौधरी से पुछा-फिर यह किसी लड़की है ?

हाथ जोड़े ही जाड़े चौधरी बोले-महाराज पन्द्रह साल पहले की बात हैं; नदी में बहुत बाढ़ आई थी । उसी बाढ़ में, मेरे बुढ़ापे की लकड़ी, यह कन्या मुझे मिली थी।

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