यह एक खाट पर बहती हुई आई थी और इसके गले में एक छोटी सी सोने की ताबीज़ थी ।
ताबीज का नाम सुनते ही राजा साहब को ताबीज देखने की उत्सुकता हुई। उनके मस्तिष्क में किसी ताबीज की धुंधली-सी स्मृति छा गई । पिता के आदेश से तिन्नी गले से ताबीज निकालने के लिए ताबीज के धागे की गाँठ खोलने लगी ।
मछुए ने फिर कहना शुरू किया-‘महराज ! इस ताबीज़ का भी बड़ा विचित्र किस्सा है। एक बार ताबीज का धागा टूट गया, कई दिनों तक याद न रहने के कारण यह ताबीज इसे न पहनाई जा सकी। बस महाराज यह तो इतनी ज्यादः बीमार पड़ी कि मरने-जीने की नौबत आ गई । और फिर ताबीज पहिनाते ही बिना दवा-दारू के ही चंगी भी हो गई । तब से ताबीज़ आज तक उसके गले में ही पड़ी है।
राजा साहब को स्मरण हो आया कि पन्द्रह साल पहिले
उनकी लड़की भी टेन्ट के अन्दर से बाढ़ में बह गई थी।
जिसके गले में उन्होंने भी एक ज्योतिषी के आदेशानुसार
ताबीज़ पहनाई थी। उन्होंने एक बार कृष्णदेव, फिर
तिन्नी के मुंह की तरफ़ देखा। उन्हें उनके मुंह में बहुत