इसी समय शुद्धी श्रीर, संगटन में चर्चा ने जोर
पकड़ा ! शताब्दियों में सोए हुए हिन्दुओं ने जाना कि
उनका संग्व्या दिनोंदिन कम होती जा रही है और विध-
मियों की, विशेकर मुसलमानों की संख्या बे-हिसाब बढ़
रही है। यदि यही क्रम चलता रहा तो, सी डेढ़ सी चपे
'या हिन्दुस्तान में हिन्दुओं का नाम मात्र भले ही रह जाय,
किन्तु हिन्दू से कहीं ढूढ़ने से भी न मिलेंगे। सभी मुसल-
मान हो जायेंगे। इसलिए धर्म-भ्रष्ट हिन्दू और दूसरे
धर्मवाला को फिर से हिन्दू बनाने और हिन्दुओं के संगठन
की सबको आवश्यकता मालूम होने लगी। आर्य समाज
ने बहुत छदा आयोजन करके दस-पाँच शुद्धियाँ भी कर
डालीं । हिन्दू समाज में बड़ी हलचल मच गई। बहुत
से खुश थे; और चहुत से पुराने खयाले वाले इन बातों को
अनर्गल समझते थे ।
उधर मुसलमान भी उत्तेजित हो उठे, तंजीम श्रीर तव-
लीग की स्थापना कर दी गई। किन्तु डाक्टर मिश्रा पर
इसका प्रभाव कुछ भी न पड़ता । हिन्दू और मुसलमान
दोनों ही समान रूप से उनके पास आते थे, और वे दोनों
की चिकित्सा दत्तचित्त होकर करते। दोनो जाति के बच्चों
को समान भाव से प्यार करते । इनकी आँखों में हिन्दुओं