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भूमिका]


बाल्यकाल स्वतंत्रता की गोद में बीता है। नगर के प्रपंचों से वह अनभिज्ञ है। दुर्भाग्य से उसका विवाह शहर में होता है। वह नगर में आकर भी अपने उसी स्वतंत्रतापूर्ण देहाती स्वभाव के कारण पर्दे का अधिक ध्यान नहीं रखती। इसका परिणाम यह होता है कि उसके संबंध में लोगें में ऐसी ग़लत-फहमी फैलती है जो अन्त में उस बेचारी के प्राण ही लेकर छोड़ती है। सोना सुन्दर है, पवित्र है, निष्कपट है, निष्कलंक है, परन्तु फिर भी उसे आत्मा-हत्या करने की आवश्यकता पड़ती है। क्यों ? इसलिए कि उसका स्वभाव तथा रहन-सहन शहर में रहने वालों से मेल नहीं खाता। वह अपने स्वतंत्रता-प्रिय स्वभाव को शहर वालों के अनुकूल नहीं बना सकी-यही इस चरित्र में अनोखापन है।

इसी प्रकार श्रीमती जी की प्रत्येक कहानी में पाठक कुछ न कुछ विचित्रता, नवीनता तथा अनोखापन पायँगे। कहानियों की भाषा बहुत सरल बोलचाल की भाषा है। इस संबंध में केवल इतना ही कहना यथेष्ट होगा कि एक विख्यात बहुभाषा-विज्ञ का कथन है कि-"यदि किसी देश की भाषा सीखना चाहते हो तो उसे स्त्रियों से सीखो ।"

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