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बिखरे मोती ]
 


का शुद्धी-संगठन और मुसलमानों का तंज़ीम-तबलीग़ दोनों व्यर्थं के उत्पात थे।

[ ३ ]

एक दिन डाक्टर साहब अपने दुवाखाने में बैंठे थे कि एक घबराया हुआ व्यक्ति जो देखने से बहुत साधारण परि- स्थिति का मुसलमान मालूम होता था, उन्हें बुलाने आया । डाक्टर साहब के पूंछने पर उसने बताया कि उसकी स्त्री बहुत बीमार है। लगभग एक साल पहले उसे बच्चा हुआ था उस समय वह अपने मां-बाप के घर थी । देहात में उचित देख-भाल न हो सकने के कारण वह बहुत बिमार हो गईं सब रहमान उसे अपने घर लिवा लीया । लेकिन दिनों-दिन तबीयत खराद ही होती जाती है । डाक्टर साहब उसके साथ तांगे पर बैठकर बीमार को देखने के लिए चल दिए। एक तंग गली के मोड़ पर ताँगा रुक गया। यहीं ज़रा आगे कुलिया से निकल कर रहमान का घर था । मकान कच्चा था; सामने के दरवाजे पर एक टाट को परदा पड़ा था, जो दो-तीन जगह से फटा हुआ था ! उस पर किसी ने पान की पीक मार दी थी । जिससे पटियाला सा लाल धब्बा बन गया था। सामने जरा सी

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