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[ एकादशी
 

मुँह पर लज्जा संकोच के भाव थे । उसका मुँह दूसरी तरफ़ था जिससे साफ़ जाहिर होता था कि वह डाक्टर के सामने अपना मुँह ढाँक लेना चाहती है। डाक्टर साहब ने फिर अाग्रह किया—आपको आज मेरे सामने थोड़ा शोरवा लेना ही पड़ेगा; इससे आपको जरूर फ़ायदा होगा।

इसपर भी उसने अस्वीकृति-सूचक सिर हिला दिया, कुछ बोली नहीं । इतने से ही डाक्टर साहब हताश न होने वाले थे। उन्होंने रहमान से पूछा कि शोरवी तैयार हो तो थोड़ा लायो; इन्हें पिलावें।

रहमान उत्सुकता के साथ कटोरा उठाकर पिछवाड़े साफ़ करने गया । इस अवसर पर उसकी स्त्री ने आँख उठाकर अत्यन्त कातर दृष्टि से डाक्टर साहब की श्रीर देखते हुए कहा "डाक्टर साह, मुझे माफ करें मैं शोरवा नहीं ले सकती'

स्वर कुछ परिचित सा था और आँखों में एक विशेष चितवन......जिससे डाक्टर साहब कुछ चकराए । एक धुँधली सी स्मृति उनके आँखों के सामने आ गई; उनके मुँह से अपने आप ही निकल गया "क्यों" ?

छलकती हुई आँखों में स्त्रो ने जवाव दिया “आज एकादशी हैं"।

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