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बिखरे मोती ]
 


टस से मस न हुए। अन्त में वे अपनी इस इच्छा को साथ ही लिए हुए इस लोक से विदा हो गई।

इसके कुछ ही दिन बाद, राधेश्याम जी जव एक दिन अपनी वैठक में कुछ मित्रों के साथ बैठे थे, और बाहर उनका लड़का हरिहर नौकर के साथ खेल रहा था, सामने से एक ताँग निकला। न जाने कैसे तांगे का एक पहिया निकल गया और ताँगा कुछ दूर तक घिसटता हुआ चला गया । एक सात-आठ साल का बालक तांगे पर से गिर पड़ा और एक बालिका जो कदाचित् उसकी बड़ी बहिन थी गिरते गिरते बच कर दूसरी तरफ खड़ी हो गई ।बालक को अधिक चोट आई थी । बालिका ने, मृगशावक की तरह घबराये हुए अपने दो सुन्दर नेत्र चंचल गति से सहायता के लिए चारों ओर फेरे और फिर अपने भाई को उठाने लगी। राधेश्याम जी ने देखा, और दौड़ पड़े; बालक को उठा कर झाड़ने पोंछने लगे । राधेश्याम के एक मित्र जगमोहन जो राधेश्याम के साथ ही दौड़ कर बाहर आए थे, बालिका को सम्बोधन कर के बोले-

-“कहाँ जा रही थीं कुन्तला ?”

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