ऐसी प्रतिज्ञा तो पत्नी के देहान्त के बाद सभी कर लेते हैं।
उसके माने यह थोड़े हैं, क्रि फिर कोई विवाह करता ही
नहीं । अरे भाई ! जन्म और मृत्यु तो जीवन में लगा ही
रहता है। संसार में जो पैदा हुआ है वह मरेगा, जो मरा
हैं वह फिर आएगा । रंज किसे नहीं होता है किन्तु उस;
रंज के पीछे वैराग थोड़े बन जाना पड़ता है। और
फिर अभी तुम्हारी उमर ही क्या है ? यही न;पैंतीस-
छत्तीस साल की, बस ? जीवन भर तपस्या करने की बात
हैं । विना स्त्री का घर जंगल से भी बुरा रहता है ।
व्रजेश की माँ चार ही छै दिनों के लिए मायके चली जाती
है तो घर जैसे काट खाने को दौड़ता हैं।
राधेश्याम-यह कोई बात नहीं, जगमोहन ! घर से
तो मुझे कुछ मतलब ही नहीं है। जिस दिन से मनोरमा
का देहान्त हुआ, घर मेरे लिए बुर ही नहीं रह गया ।
बात इतनी है कि बच्चे की देख-भाल करने वाला अब
कोई नहीं है। अम्मी थी, तब तक तो कोई बात ही न
थी । पर अब बच्चे की कुछ भी देख-भाल नहीं होती।
नोकरों पर बच्चे को छोड़ देना उचित नहीं, और मैं कितनी
देख-भाल कर सकती हैं, तुम्हीं सोचो ? परिणाम यह