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बिखरे मोती ]
 


कहते हैं कि ढलती उमर का विवाह और विशेष कर दूसरे विवाह की सुन्दर स्त्री मनुष्य को पागल बना देती है। था भी कुछ ऐसा ही।

कुन्तला अपने जीवन से वेज़ार-सी हो रही थी।

किन्तु वह राधेश्याम को किस प्रकार रोक सकती थी ? क्योंकि वह उनकी विवाहिता पत्नी ठहरी । सात भांवरे फिर लेने के वाद् राधेश्याम को तो उसके शरीर की पूरी माँनापोली सी (monopoly ) मिल चुकी थी न ।

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इधर कुछ दिनों से शहर में एक स्त्री-समाज की स्थापना हुई थी। एक दिन उसकी कार्यकारिणी की कुछ महिलाएँ आकर कुन्तला को भी निमंत्रण दे गई । कुन्तला ने सोचा, अच्छा ही है; घंटे-दो-घंटे घर से बाहर रहकर, अपने इसे जीवन के अतिरिक्त और भी देखने और सोचने- समझने का अवसर मिलेगा । उसने निमंत्रण स्वीकार कर लिया; और वहीं गई भी । यहाँ जितनी स्त्रियों ने भाषण पढ़े या दिए, कुन्तल ने सुने; उसने सो वह इन सबसे अधिक अच्छा लिख सकती है और बोल सकती है। घर आकर

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