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बिखरे मोती ]
 


अखिलेश्वर खुश हुए; उन्होंने कविताएँ कई बार पढ़ीं और राधेश्याम को भी पढ़कर सुनाई। कुन्तला की बुद्धि की बड़ी प्रशंसा की; किन्तु राधेश्याम खुश न हुए। उन्हें ऐसा मालूम हुआ कि जैसे कुन्तला ने अखिलेश्वर के विरह में ही विकल होकर यह कविताएँ लिखी हैं।

‘अखिलेश्वर निष्कपट और नि:स्वार्थ भाव से ही कुन्तला का शिक्षण कर रहे थे। उन्हें कुन्तला से कोई विशेष प्रयोजन न था । कुन्तला के इस शिक्षण से उन्हें इतना ही अस्मि-सन्तोष था कि वे साहित्य की एक सेविका तैयार कर रहे हैं जिसके द्वारा कभी न कभी साहित्य की कुछ सेवा अवश्य होगी। राधेश्याम के हृदय में इस प्रकार उनके प्रति ईर्पा के भाव प्रज्वलित हो चुके हैं, इसका उन्हें ध्यान भी न था ।

[ ६ ]

अखिलेश्वर कई दिनों तक लगातार बीमार रहने । के कारण घर के बाहर न निकल सके । खाट पर अकेले पड़े-पड़े धनिया गिनते हुए उन्हें. अनेक, बार कुन्तला की याद आई। कई बार उन्होंने सोचा कि उसे .

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