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[आहुति
 

बुलवा भेजें; फिर भी जाने क्या आगा-पीछा सोच कर वे कुन्तला को न बुला सके। इधर कई दिनों से अखिलेश्वर का कुछ भी समाचार ने पाकर कुन्तला भी उनके लिए उत्सुक थी। वह बार-बार सोचती, एकाएक इस प्रकार आना क्यों बन्द कर दिया? क्या बात हो गई? किन्तु वह अखिलेश्वर के विषय में राधेश्याम से कुछ पूछते हुए डरती थी। इसी बीच में एक दिन कुन्तला की मां ने कुन्तला को बुलवा भेजा। राधेश्याम कुन्तला से यह कह कर कि जब ताँगा आवे तुम चली जाना, कचहरी चले गए। कुन्तला मां के घर जाकर जब वहाँ से ३ बजे लौट रही थी तो उसे रास्ते में हाथ में दवा की शीशी लिए हुए अखिलेश्वर का नौकर मिला। नौकर से मालूम करके कि अखिलेश्वर बीमार हैं, कई दिनों तक तेज़ बुखार रहा है, अब भी कई दिनों तक घर से बाहर न निकल सकेंगे, कुन्तला अपने को न रोक सकी। क्षण भर के लिए अखिलेश्वर से मिलने के लिए उसका हृदय व्याकुल हो उठा। अखिलेश्वर के मकान के सामने पहुँचते ही ताँगा रुकवा कर वह अन्दर चली गई। साथ में उसकी छोटी बहिन भी थी।

अचानक कुन्तला को अपने कमरे में देखकर अखिलेश्वर

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