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बिखरे मोती]
 

घूँघट सरकाते देख वे ज़रा मुस्कराए; मैं भी ज़रा हँस पड़ी; पर कुछ बोली नहीं। उनके नौकर आए और देखते ही देखते रस्सी समेत घड़ा निकाल लिया गया। मैं घड़ा उठाकर अपने घर की तरफ़ चली। शब्दों में नहीं, किन्तु कृतज्ञता भरी आँखों से मैंने उनसे कहा—मैं आपके इस उपकार का बदला इस जीवन में कभी न चुका सकूँगी"। क़रीब पौन घंटा कुँए पर लग गया। अम्मा जी की घुड़कियों का डर तो लगा ही था। जल्दी जल्दी आई घड़े को धिनौची पर रख, रस्सी को खूँटी पर टाँगने के लिए मैंने ज्योंही हाथ ऊपर उठाया, देखा कि एक हाथ का सोने का कंगन नहीं है। तुम कहोगे कि पानी भरने वाली और सोने का कंगन, यह कैसा मेल! वह भी बताती हूँ—यह कंगन मेरी माँ का था। मरते समय उन्होंने अनुरोध किया था कि वह कंगन ब्याह के समय मुझे पैर-पुजाई में दिया जाय। इस प्रकार वह कंगन मुझे मिला था। रस्सी टांग कर मैं फिर कुँए की तरफ भागी, देखा तो वे सामने से आ रहे थे। उन्होंने यह कहकर कि "यह तुम्हारे अल्हड़पन की दूसरी निशानी है" कंगन मेरी तरफ बढ़ा दिया। कंगन लेकर चुपचाप मैंने जेब में रख लिया और जल्दी जल्दी घर आई।

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