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[ थाती
 

[ ३ ]

'घर आकर देखा, पतिदेव स्कूल से लौटे थे । 'अम्मा जी बड़े क्रोध में उनसे कह रहीं थीं-

देखा नई बहू के लच्छन । एक घड़ा पानी भरने गई तो घंटे भर बाद लौटी, और यहाँ पानी रख कर फिर दीवानी की तरह कुएँ की तरफ़ भागी । मैंने तो पहले ही कहा था कि शहर की लड़की ने व्याहो; पर तुम न माने । बेटा ! भला यह हमारे घर निभने के लच्छन हैं ? और सब तो सब, पर जमीदार के लड़के से बात किये बिना इसकी क्या अंटकी थी ? यह इधर से भागी जा रही थी वह सामने से आ रहा था। उसने जाने क्या इसे दिया और इसने लेकर जेब में रख लिया। मुझे तो यह बातें नहीं सुहाती! फिर तुम्हारी बहू है; तुम जानो; बिगाड़ी चाहे बनाओ। मेरी तरफ उन्होंने गुस्से से देखकर पूँछा-- क्या है तुम्हारी जेब में बतलाओ तो !

मैंने कंगन निकालकर उनके सामने रख दिया। वे फिर डाँट कर बोले-“यह उसके पास कैसे पहुँचा” ?

मैंने डरते-डरते अपराधिनी की तरह आदि से लेकर

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