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[विनीत निवेदन
 

की तंत्री के साथ मिलाकर ताल स्वर में बैठाने का ही प्रयत्न किया है।

हृदय के टूटने पर आंसू निकलते हैं, जैसे सीप के फूटने पर मोती। हृदय जानता है कि उसने स्वयं पिघलकर उन आंसुओंं को ढाला है। अत: वे सच्चे हैं। किन्तु उनका मूल्य तो कोई प्रेमी ही बतला सकता है। उसी प्रकार सीप केवल इतना जानती है कि उसका मोती खरा है; वह नहीं जानती कि वह मूल्यहीन है अथवा बहुमूल्य। उसका मूल्य तो रत्नपारिखी ही बता सकता है। अतएव इन 'बिखरे मोतियों' का मूल्य कलाविद् पाठकों के ही निर्णय पर निर्भर है।

मुझे किसी के सामने इन्हें उपस्थित करने मे संकोच ही होता था परन्तु श्रद्धेय श्री० पदुमलाल पुन्नालाल जी बख्शी के आग्रह और प्रेरणा ने मुझे प्रोत्साहन देकर इन्हें प्रकाशित करा ही दिया, जिसके लिए हृदय से तो मैं उनका आभार मानती हूँ किन्तु साथ ही डरती भी हूँ कि कहीं मेरा यह प्रयत्न हास्यास्पद ही न सिद्ध हो।

जबलपुर सुभद्राकुमारी चौहान
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
संवत १९८९