उनके स्वर में पीड़ा थी, शब्दों में माधु, और आँखों में न जाने कितनी करुणा का सागर उमड़ रहा था। मैंने आश्चर्य के साथ उनकी और देखा; आज पहिली ही वार तो इस प्रकार वे मेरे पास आकर बोले थे; उन्होंने कहा- “पहिली बात, जो मैं तुमसे कहना चाहता हूँ वह यह' कि, मैरे ही कारण तुम पर इतने अत्याचार हो रहे हैं, यदि मुझे इसका पता चल जाता तो वे अत्याचार कब के वन्दहो चुके होते । दूसरी बात जो मैं तुमसे कहने आया हूँ वह यह कि आज से मैं तुम पर होने वाले अत्याचार की जड़े ही उखाड़ कर फेंक देता हूँ। तुम खुश रहना, मेरी अल्हड़ रानी ! (वे मुझे इसी नाम से पुकारा करते थे) यदि मैं तुम्हें भूल सका तो फिर यहाँ लौटकर आऊँगा; नहीं तो आज ही सदा के लिए विदा होता हूँ।”
"मुझ पर विजली सी गिरी। मैं कुछ बोल भी न पाई
थी कि वे मेरी आंँखों से ओझल हो गए। अब मेरी हालत
पहिले से ज्यादः खराब थी। मेरा किसी काम में जी न
लगता था । कलेजे में सदा एक आग सी सुलभ करती;
पुरन्तु मुझे खुल कर रोने का अधिकार न था। अब तो
सभी लोग मुझे पागल कहते हैं। मैं कुछ भी करूंँ, करने देते
हैं, इसी लिए तो आज खुल कर रो सकती हूँ ; और तुम्हें