"देख लेना किसी दिन फाँसी पर न लटक जाऊं तो
कहना। लकड़ी की तलवार है तो क्या हुआ; मारा कि
नहीं तुम्हें ?
बच्चों की इन बातों में.ठाकुर साहब क्षण भर के लिए अपने आपको भूल म गए। उधर १० मिनट से ११ होते ही दरोगा नियामत अली ने अपने जवानों को लाठियां चलाने का हुक्म दे ही तो दिया । देखते ही देखते अमराई में लाठियाँ बरसने लगी। आज अमराई में ठाकुर साहब के भी घर की स्त्रियाँ और बच्चे थे और गाँव के भी प्रायः सभी घरों की स्त्रियाँ बच्चे और युवक त्यौहार मनाने आए थे। उनकी थालियाँ राखी, नारियल, केशर, रोली, चन्दन और फूल मालाओं से सजी हुई रखी थीं। किन्तु कुछ ही देर बाद वे थालियाँ, जिनमें रोली और चन्दन था, खून से भर गई।
[ ३ ]
जब पुलिस मजमें को तितर-बितर करके चली गई तो
देखा गया कि घायलों की संख्या करीब तीस के थी ।
जिनमें अधिकतर बच्चे, कुछ स्त्रियाँ और सात-आठ युवक