थे। विजय को सबसे ज्यादः चोट आई थीं। चोट तो
कान्ती को भी थी, किन्तु विजय से कम । ठाकुर साहब
का तो परिवार का परिवार ही घायल था । घायलों को
उनके घरों में पहुँचाया गया और अमराई में पुलिस को
पहरा बैठ गया ।
विजय की चोट गहरी थी, दशा बिगड़ती जा रही थी। जिस समय वह अपने जीवन की अन्तिम घड़ियाँ गिन रहा था उसी समय कोर्ट से ठाकुर साहब के लिए सम्मन आया। उन्हें कोर्ट में यह पूंछने के लिए बुलाया गया था कि उनका आम का बगीचा असहयोगियों का अङा कैसे और किसके हुक्म से बनाया गया । ठाकुर साहेब भी आनरेरी मजिस्ट्रेटी का इस्तीफा, राय साहिबी का त्याग पत्र जेब में लिए हुए कोर्ट पहुँचे । उनका बयान इस प्रकार था ।
मेरा बगीचा असहयोगियों का अङा कभी नहीं रहा
है। क्योंकि मैं अभी तक सरकार का बड़ा भारी खैर-
वाह रहा हूं। मुझे सरकार की नीति पर विश्वास था;
और अपने घर में बैठा हुआ मैं अखवारी दुनिया का
विश्वास कम करता था। मुझे यक़ीन ही न आता था