कि न्याय की आड़ में सरकार निरीह बालक, स्त्रियों और
पुरुषों पर कैसे लाठियाँ चलवा सकती है ? परन्तु आज तो
सारा भेद मेरी आँखों के ही आगे विपैले अक्षरों में लिखा
गया है। मेरी तो यह विश्वास हो गया है कि इस शासन-
विधान में, जो प्रजा को हितकर नहीं हैं, अवश्य परिवर्तन
होना चाहिए। हर एक हिन्दुस्तानी का धर्म है कि वह
शासन-सुधार के काम में पूरा-पूरा सहयोग दे । मैं भी
अपना धर्म पालन करने के लिए विवश हैं और यह मेरी
राय साहिवी और आनरेरी मजिस्ट्रेटी का त्याग-पत्र है।
ठाकुर साहव तुरंत कोर्ट से बाहर हो गए।
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दूसरे ही दिन से उस अमराई में रोज ही कुछ आदमी राष्ट्रीय गाने गाते हुए गिरफ्तार होते है और साठ साल के बूड़े ठाकुर साहब को, सरकार के इतने दिन की खैर- ख्वाही के पुरस्कार स्वरूप छै महीने की सख्त सजा और ५००) का जुरमाना हुआ। जुरमाने में उनकी अमराई नीलाम कर ली गई । जहाँ हर साल बरसात में बच्चे झूला झूलते थे वहीं पर पुलिस के जवानों के रहने के। लिए पुलिस-चौकी चनने लगी।