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बिखरे मोती ]
 


कि मैं न जाऊँ तो जब तक आप न कहेंगी मैं न जाऊँगा ।

वीणा नेसर हिलाते हुए कहा—जी नहीं,रहने दीजिए; मैं कोई पन्न-वत्र न पढूँगी और न आपको जाने ही दुँगी ।

हल्की मुस्कुराहट के साथ निरंजन ने पत्र उठा लिया और बोले—आप न पढ़ना चाहें तो भले ही न पढ़ें; पर...

उनकी बात को काटते हुए वीणा ने कहा--"अच्छा लाइये; जरा देखें तो सही, किसका पुत्र है ? पत्र-लेखक मेरा कोई दुश्मन ही होगा जो इस प्रकार अनायास ही आपको मुझसे दूर खींच ले जाना चाहता है ।”

निरंजन हँस पड़े; और हँसते हँसते बोले–पत्र पढ़ लेने के बाद पत्र-लेखक को शायद आप अपना दुश्मन न समझ कर मित्र ही समझे ।

वीणा ने विरक्ति के भाव से कहा जी नहीं, यह हो ही नहीं सकता; जो आपको मुझसे दूर खींच ले जाना चाहे, वह कोई भी हो, मैं तो उसे अपना दुश्मन ही कहूँगी ।”

निरंजन ने कहा-“सच !! पर आप ऐसा क्यों सोचती हैं ?”

वीणा ने निरंजन की बात नहीं सुनी । वह तो पत्र पढ़ रही थी, जिसमें लिखा था-

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