वीणा कुछ न बोली । निरंजन ने कहा-“जी हां, यहीं
बात तो मैं भी इन से कह रहा था कि आप इतनी मेहनत
न करें। सब होता रहेगा।”
[ २ ]
उस दिन निरंजन के जाने के बाद वीणा ने रात भर जाग कर सारी रुवाइयों का अनुवाद कर डाला । अव केवल एक बार देख लेने ही की आवश्यकता थी । निरंजन की पत्नी को पत्र पढ़ लेने के बाद वीणा अपने आप ही अपनी नज़रों में गिरने लगी। उसे ऐसा मालूम होता था कि निरंजन के प्रति उसका प्रेम स्वार्थ से परिपूर्ण है; क्योंकि उसे उनका साथ अच्छा लगता है और इसीलिए वह उन्हें अपने दुराग्रह से रोके जा रही है। निरंजन को पत्नी की नम्रता एवं उसके शील और विश्वास के सामने वीणा अपनी दृष्टि में स्वयं ही बहुत हीन हुँचने लगी।
निरंजन बहुत नम्र प्रकृति के पुरुष थे; और विशेष
कर स्त्रियों के साथ वे और भी नम्रता से पेश आते । यही
कारण था कि वे वीणा का आग्रह न टाल सके । कई बार
जाने का निश्चय करके भी वे न जा सके; किन्तु आज
वीणा ने सोचा कि अब मैं उन्हें कदापि न रोकूँगी; जाने