ही दूंगी। मैं जानती हूंँ कि उनका जाना मुझे बहुत
अखरेगा, परन्तु यह कहां का न्याय है कि मैं अपने स्वार्थ
के लिए एक पति-पत्नी. को अलग-अलग रहने के लिए
बाध्य करूंँ । न ! अब यह न होगा; जो वीतेगी वह सहूँगी;
पर उन्हें अब न रोकूँगी ।
दूसरे दिन समय पर ही निरंजन आए । वीणा उन्हें ड्राइंग रूम में ही मिली । उन्हें देखते ही उठकर हँसती हुई बोली (यद्यपि उसकी वह हँसी ओंठों तक ही थी; उसकी अन्तरात्मा रो रही थी, उसे ऐसा जान पड़ता था कि निरंजन के जाते ही उसे उन्माद हो जायगा)-“कहिये निरंजन जी,.अपने जाने की तैयारी करली ?”
निरंजन ने नम्रता से कहा-“जी नहीं ! मैं आज कहाँ जा रहा हूँ ? मैं तो जब तक आपकी रुबाइयों का अनुवाद न हो जायगा, तब तक यहीं रहूँगा ।”
वीणा बोली-“मेरी तो सब रुवाइयों का अनुवाद हो गया । आप देख लीजिए।
अश्चर्य से निरंजन ने पूछा-"सच ? मालूम होता है आपने रात को बहुत मेहनत की है।"
वीणा-“हां, मेहनत तो जरूर की हैं; किन्तु आपको