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ग्रामीण
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पंडित रामधन तिवारी को परमात्मा ने सब कुछ
दिया था; किन्तु सन्तान के बिना उनका घर सूना
था । धन-धान्य से भरा-पूरा घर उन्हें जंगल की तरह
जान पड़ता । संतान की लालसा से उन्होंने न जाने
कितने जप-तप और विधान करवाए; और अन्त में उनकी
ढलती उमर में पुत्र तो नहीं, पर एक पुत्री
का जन्म हुआ। इस समय तिवारी जी ने ख़ूब खुले
हाथों खर्च किया। सारे गाँव को प्रीति-भोज दिया।
महीनों घर में ढोलक ठनकती रही। कन्या ही सही पर
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