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बिखरे मोती]


जाना ही पड़ेगा; क्यों. उसके पीछे पड़ी रहती हो ? जितने दिन है, खेल-खा लेने दो। कुछ तुम्हारे घर जन्म- भर थोड़े बनी रहेगी ।” लाचार नन्दो चुप हो जाती ।

धीरे-धीरे सोना ने बारह वर्ष पूरे करके तेरहवें में पैर रखा । किन्तु तिवारी जी को इस तरफ ध्यान ही न था। एक दिन नन्दी ने उन्हें छेड़ा--“सोना के विवाह की भी कुछ फिकर है ?”

तिवारी जी चौंक-से उठे, बोले-सोना का विवाह ? अभी वह है कै साल की ?

किन्तु यह कितने दिनों तक चल सकता था। लड़की का विवाह तो करना ही पड़तः । वैसे तो गाँव में ही कई ऐसे लड़के थे जिससे सोना का विवाह हो सकता था। किन्तु नन्दो और तिवारी जी दोनों ही सोना का विवाह शहर में करना चाहते थे । शहर के जीवन का सुनहला सुपना रह-रह के उनको आंखों में छा जाता था। इन्होंने जानकी र नारायण से शहर में कोई योग्य घर तलाश करने के लिए कहा।

इधर सोना बारह साल की हो जाने पर भी निरी बालिका ही थी, अब भी । वही राजा-रानी का खेल खेला

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