पृष्ठ:बिखरे मोती.pdf/१९१

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[ग्रामीणा
 

जाता। सुन्दर फूल-पत्तियां अब भी इकट्ठी की जातीं और तितलियों के पीछे अब भी उसी प्रकार दौड़ लगती। सोना के अंग-प्रत्यंग में धीरे-धीरे यौवन का प्रवेश प्रारम्भ, हो चुका था; किन्तु सोना को इसका ज्ञान न था। उसके स्वभाव में अब भी वहीं लापरवाही, वही अल्हड़पन और भोलापन था जो आठ साल की बालिका के स्वभाव में, मिलेगा।

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सोना का विवाह तै हो गया। वर की आयु २२ या २३ साल की थी। वह सुन्दर, स्वस्थ और चरित्रवान नवयुवक थे। एक प्रेस में नौकरी करते थे; ७५) माहवार तनख्वाह पाते थे। घर में एक बृढ़ी मां को छोड़कर और कोई न था। बिहार के रहने वाले थें। कुछ ही दिनों से यू० पी० में आए थे। परदा के बड़े पक्षपाती और पुरानी रुढ़ियों के कायल थे। नाम या विश्व मोहन। जब तिवारी जी ने विश्व मोहन और उनके घर को देखा तो इनकी खुशी का ठिकाना न रहा। विश्वमोहन, बाबू क्या, पूरे साहब देख पड़ते थे। उनके घर में खिड़की और दरवाज़ों पर चिकें पड़ी हुई थीं। जमीन पर एक

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