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[ग्रामीणा
 

की फिकर लगी रहती है। जहाँ गृहस्थी का झंझट सिर पर पड़ा सब खेलना-कूदना भूल जाता है । जब तक विवाह नहीं होता तभी तक का खेलना-खाना समझो ।

नन्दो-"जानकी दीदी ! तुम लोगों की कृपा से मेरी सोना सुखी रहे। जैसे उसका नाम सोना है। उसके जीवन में सोना ही वरसता रहे।

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सोना का विवाह हो गया । रामवन तिवारी की लड़की का विवाह गांँव भर में एक नई बात थी ! इस विवाह में मंगलामुखी के स्थान पर आगरे से भजन-मंडली आई थी जो उपदेश के अच्छे-अच्छे भजन गा के सुनाया करती थी। गहने-कपड़े सब नए फैशन के थे। लंहगों का स्थान साङियो ने ले लिया था । जूते थे, मोजे थे, रूमाल थे, पाउडर की डिब्बी, सुगंधित तेल और भी न जाने क्या-क्या था; जिनकी नन्दो और जानकी ने कभी कल्पना तक न की थी । गाँव की औरतों को नन्दो बड़ी खुशी-खुशी सब चीजें दिखाया करती । देखने-वाली सोना के सौभाग्य की सराहना करती हुई लौट जातीं ।

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