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बिखरे मोती ]
 


उसको समझ में ही न आता था कि चिक के पास जाकर उसने कौन-सा अपराध कर डाला । फिर भी बेचारी ने नतमस्तक सभी झिड़कियाँ सहलीं। और दूसरा चारा ही क्या था ? इसी बीच जब तिवारी जी सोना को लेने आए तो उसे ऐसा जान पड़ा जैसे किसी ने डूबते से उबार लिया हो । पिता को देखकर वह बड़ी खुश हुई । उसने मन ही मन प्रतिज्ञा की कि अब के जाऊँगी तो फिर यहाँ कभी न आऊँगी ।

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लेकिन शहरवाले बहू को मायके में ज्यादः रहने ही कब देते हैं ? सोना को मायके आए अभी १५ दिन भी न हुए थे कि विश्वमोहन सोना को लेने के लिए आ गए। वे जब आ रहे थे, सोना उन्हें रास्ते में ही विही के पेड़ पर चढ़ी हुई मिली। उसके साथ और भी बहुत से लड़के- लड़कियां थीं। सोना का सर खुला था और वह विही तोड़-तोड़ कर खा रही थी, और अपनी जूठी विहीं खींच-खींच कर मारती भी जा रही थी और ऊपर बैठी-बैठी हंस रही थी । सोना को विश्वमोहन ने देखा; किन्तु सोना उन्हें न देख सकी। पत्नी को चाल-

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