उसको समझ में ही न आता था कि चिक के पास जाकर
उसने कौन-सा अपराध कर डाला । फिर भी बेचारी ने
नतमस्तक सभी झिड़कियाँ सहलीं। और दूसरा चारा
ही क्या था ? इसी बीच जब तिवारी जी सोना को लेने
आए तो उसे ऐसा जान पड़ा जैसे किसी ने डूबते से उबार
लिया हो । पिता को देखकर वह बड़ी खुश हुई । उसने
मन ही मन प्रतिज्ञा की कि अब के जाऊँगी तो फिर यहाँ
कभी न आऊँगी ।
[ ५ ]
लेकिन शहरवाले बहू को मायके में ज्यादः रहने ही
कब देते हैं ? सोना को मायके आए अभी १५ दिन भी
न हुए थे कि विश्वमोहन सोना को लेने के लिए आ गए।
वे जब आ रहे थे, सोना उन्हें रास्ते में ही विही के पेड़ पर
चढ़ी हुई मिली। उसके साथ और भी बहुत से लड़के-
लड़कियां थीं। सोना का सर खुला था और वह विही
तोड़-तोड़ कर खा रही थी, और अपनी जूठी विहीं
खींच-खींच कर मारती भी जा रही थी और ऊपर
बैठी-बैठी हंस रही थी । सोना को विश्वमोहन ने
देखा; किन्तु सोना उन्हें न देख सकी। पत्नी को चाल-