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बिखरे मोती ]
 


लोग क्या चकते हैं, सोना न जानती थी । वह तो उन्हें अपना हितैषी और मित्र समझती थी । वही लोग, जो सोना से घुल-मिलकर घंटों चतिचीत किया करते, बाहर जाकर न जाने क्या-क्या वक्रते। धीरे-धीरे इसकी चर्चा विश्वमोहन के भी कानों तक पहुँची। इन सब बातों को रोकने के लिए उन्होंने अपनी माँ को उपस्थिति आवश्यक समझी । इसलिए माँ को बुलवा भेजा ( साथ ही सोना को भी समझा दिया कि वह बहुत सम्हल कर रहा करे । सासके आने पर सोनी के ऊपर फिर से पहरो वैठ गया; किन्तु वह तो गाँव की लड़की थी साफ़ हवा में विचर चुकी थी। उसके लिए सख्त परदे में, बिलकुल बन्द होकर रहना बड़ा कठिन था। इसलिए उसका जीवन बड़ा दुखी था। उससे घर के भीतर बैठा ही न जाता था। जरा भौका पाते ही चाहर साफ़ हवा में जाने के लिए उसका जी सचल उठतो; और वह अपने आप को रोक न सकती । विश्वमोहन ने एकान्त में उसे कई वार समझाया कि सोना के इस आचरण से उनकी बहुत चंदनामी हो रही है, इसलिए वह खिड़की-दरवाजों के पास न जाया करे; बाहर न निकला करे। एक दो दिन तक तो सोना को उनकी बातें याद रहतीं; किन्तु वह फिर भूल

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