पृष्ठ:बिखरे मोती.pdf/२०३

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[ग्रामीणा
 



जाती और वही हाल फिर हो जाता । फिर खिड़की- दरवाजों के पास जाती; फिर वाहर की साफ़ हवा में जाने के लिए, प्रकृति के सुन्दर दृश्यों को देखने के लिए उसकी आँखें मचल उठतीं ।

एक दिन विश्वमोहन को किसी काम से शहर के बाहर जाना था। सोना ने पति का सामान ठीक कर उन्हें स्टेशन रवाना किया। सास खोना खा चुकने के बाद लेट गई । सोना ने अपनी गृहस्थी के काम-धंधे समाप्त करके, कंघी चोटी की; कपड़े बदले; पान बना के खाया; फिर एक पुस्तक लेकर पढ़ने के लिए खाट पर लेट गई । पुस्तक कई बार की पढ़ी हुई थी; दो चार पेज उलट-पलट कर देखे; जी ने लगा उसी समय ठेले वाले ने आवाज़ दी “दो पैसे वाला”, “दो पैसे वाला”, सब चीजें दो-दो पैसे में लो ।” किताब फेंक कर सोना दरवाज़े की तरफ दौड़ी ठेले वाला दूर निकल गया था; दूर तक नजर दौड़ाई; कहीं भी न देख पड़ा; निरास होकर लौटने ही वाली थी कि पड़ोस ही में रहने वाला बनिए का लड़का फैज़ू दौड़ा हुआ आया बोला-भौजी ! सुई-तागा हो तो जरा मेरे कुर्ते में बटन टाँक दो; मैं कुश्ती देखने जाता हूँ ।

सोना ने पूछा-कुश्ती देखने जाते हो कि लड़ने ?

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