पृष्ठ:बिखरे मोती.pdf/२०५

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[ग्रामीणा
 


विश्व मोहन ने उसकी तरफ़ आँख उठाकर भी न देखा । उसने डरने-डरते पति से पूछा-कैसे लौट आए ?

विश्वमोहन ने रूखाई से दो शब्दों में उत्तर दिया- गाड़ी लेट है।

सोना ने फिर छेड़ा-अब कब जाओगे।

विश्वमोहन के एक तीव्र दृष्टि पत्नी पर डाली और कठोर स्वर में बोले—गाड़ी तीन घंटे बाद नाचगी; तत्र चला जाऊंगा ।।

सोना फिर नम्रता से बोली-तो इस प्रकार बैठे कब तक रहोगे ? मैं खाट बिछाए देती हैं; आराम से लेट जाओ ।

“तुम्हें कष्ट करने की आवश्यकता नहीं; मैं बहुत अच्छी तरह हूँ” विश्वमोहन ने कड़े स्वर में रुखाई से कहा। सोना के बहुत आग्रह करने पर विश्वमोहन ने कमरे में पैर रखा; न वे कुछ बोले और न खाट पर ही लेटे; कुसी पर बैठ गए । एक पुस्तक उठाकर उसके पन्ने उलटने लगे ! पढ़ने के नाम से कदाचित् एक अक्षर भी न पढ़ सके हों; किन्तु इस प्रकार वे अपनी अन्तर वेदना को चुपचाप लहू की घूँट की तरह पी रहे थे । सोना का आचरण उन्हें हार-

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