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बिखरे मोती ]

"जी हाँ। आइए बैठिए"।

आदर प्रदर्शित करते हुए मैंने कहा—"कल के सम्मेलन में उनकी कविता मुझे बहुत पसन्द आई; क्या एक साहित्य-प्रेमी के नाते मैं उनसे मिल सकता हूँ?"

एक कुर्सी पर बैठालते हुए वह बोले—“वह मेरी लड़की है, मैं अभी उसे बुलवाये देता हूँ।”

उन्होंने तुरन्त नौकर से भीतर सूचना भेजी और उसके कुछ ही क्षण बाद वे बाहर आती हुई दीख पड़ीं।

परिचय के पश्चात बड़ी देर तक अनेक साहित्यिक विषयों पर उनसे बड़ी ही रुचिकर बातें होती रहीं। चलने का प्रस्ताव करते ही, उन्होंने संध्या-समय भोजन के लिए निमंत्रण दे डाला। इसे अस्वीकृत करना भी मेरी शक्ति के बाहर था। अत: दिन भर वहीं उनके साथ रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ। और इन थोड़े-से घंटों में ही उनकी असाधारण प्रतिभा देखकर मैं चकित हो गया। अब तक का मेरा आकर्षण सहसा भक्तियुक्त आदर में परिणत हो गया। भोजन के उपरान्त मुझे अपनी यात्रा प्रारंभ करनी ही पड़ी। परन्तु मार्ग भर मैं कुछ