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[ भग्नावशेष


ऐसा अनुभव करता रहा जैसे कहीं मेरी कोई वस्तु छूट-सी गई

[ ४ ]

घर लौट कर मैंने उन्हें दो-एक पत्र लिखे, पर उत्तर एक का भी न मिला। विवश था; चुप ही रहना पड़ा। किन्तु उनकी कविताओं की खोज निरन्तर ही किया करता था।

इधर कई महीनों से उनकी कविता भी देखने को नहीं मिली । न जाने क्यों, एक अज्ञात आशङ्का रह-रह कर मुझे भयभीत बनाने लगी। अन्त में एक दिन उसे मिलने की ठान कर, घर से चल ही तो पड़ा। चलने के साथ ही बाईं आँख फड़की, और बिल्ली रास्ता काट गई । इन अपशकुनों ने मेरी अनिश्चित आशंका को जैसे किसी भावी अमंगल का निश्चित रूप-सा दे दिया । वहाँ पहुँच कर देखा, मकान में ताला पड़ा है। हृदय धक से हो गया। पता लगाने पर ज्ञात हुआ कि कई महीने हुए उनके पिता का देहान्त हो गया है, उनके मामा आकर उन्हें अपने साथ लिवा ले गये। बहुत खोज करने पर भी मैं उनके मामा के घर का पता न पा सका। इस