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बिखरे मोती ] |
"सुनकर क्या करोगे?"
"जो करते बनेगा।"
"तुमसे कुछ भी न बनेगा।"
"तौ भी।"
"तो भी क्या कहूँ? क्या तुम नहीं जानते होली या कोई भी त्यौहार वही मनाता है जो सुखी है। जिसके जीवन में किसी प्रकार का सुख नहीं, वह त्यौहार भला किस विरते पर मनावे?"
"तो क्या तुमसे होली खेलने न आऊँ?"
"क्या करोगे आकर?"
सकरुण दृष्टि से करुणा की ओर देखते हुए नरेश साइकिल उठा, घर चल दिया। करुणा अपने घर के काम-काज में लग गई।
[ २]
नरेश के जाने के आध घंटे बाद ही करुणा के पति जगत प्रसाद ने घर में प्रवेश किया। उनकी आँखें लाल थीं। मुँह से शराब की तेज बू आ रही थी। जलती हुई
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