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बिखरे मोती]

"भाभी, दरवाजा खोलो" किसी ने बाहर से आवाज दी। करुणा ने कष्ट के साथ उठकर दरवाजा खोल दिया। देखा तो सामने रंग की पिचकारी लिए हुए नरेश खड़ा था। हाथ से पिचकारी छूट कर गिर पड़ी।

उसने साश्चर्य पूछा—

"भाभी, यह क्या?"

करुणा की आँखें छलछला आईं; उसने रुँधे हुए कंठ से कहा-—

"यही तो मेरी होली है, भैया।"