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बिखरे मोती]

गोपाल बहुत सीधा और स्नेही लड़का था। थानेदार का लड़का और गोपाल एक ही कक्षा में पढ़ते थे और दोनों में खूब दोस्ती थी। थानेदार और उनकी बीवी दोनों ही गोपाल को अपने लड़के की ही तरह प्यार करते थे। थानेदार को बड़ा अफ़सोस हुआ, बोले, "आग लगे ऐसी नौकरी में। गिरानी का ज़माना है, वरना मैं तो इस्तीफ़ा देकर चल देता । पर करूँ तो क्या करूँ ? घर में बीवी-बच्चे हैं, बूढ़ी मा है; इनका निर्वाह कैसे हो ? नौकरी बुरी जरूर है, पर पेट को सवाल उससे भी बुरा है। आज ६०) माहवार मिलते हैं; नौकरी छोड़ने पर कोई बीस रुपट्टी को भी न पूछेगा-पापी पेट के लिए नौकरी तो करनी ही पड़ेगी; पर हाँ, इस हाय-हत्या से बचने का एक उपाय है। तीन महीने को मेरी छुट्टी बाकी है। तीन महीने बहुत होते हैं। तब तक यह तूफ़ान निकल हो जायगा । यह सोचकर उन्होंने छुट्टी की दरख्वास्त दूसरे ही दिन दे दी।

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उधर कोतवाल बख्तावर सिंह का बुरा हाल था।

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