पृष्ठ:बिखरे मोती.pdf/३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

[पापी पेट

भीतर कल के गिरफ्तार-शुदा कैदियों का मुकदमा होगा । उसमें आपकी गवाही होगी। आप ठीक ११ बजे जेल पर पहुँच जाइये।” कोवताल साहब ने कहा, “बहुत अच्छा ।"

अब कोतवाल साहब अपने दफ़तर के काम में लग गए । आफ़िस में पहुँचते ही उनका रोज़ को ही तरह कुड़-कुड़ाना शुरू हो गया । कोतवाली में काम बहुत रहता हैं, बड़ा शहर है; दिन भर काम करते-करते पिसे जाते हैं। एड़ी, चोटी का पसीना एक होजाता है। खाने तक की फुरसत नहीं मिलती। चौबीसों घंटे गुलामी बजानी पड़ती हैं, तब कहीं तीन सौ रूपट्टी मिलते हैं। तीन सौ में होता ही क्या है ? आजकल तो पाँच सौ से कम में कोई इज्ज़तदार आदमी रह ही नहीं सकता। इसी के लिये झूट, सच,अन्याय, अत्याचार क्या-क्या नहीं ? उस पड़ता ? पर उपाय भी तो कुछ नहीं है। इसकरुणा के शरीर को कायम रखने के लिये पेट में निर्दोष, झोकना ही पड़ेगा । क्या ही अच्छा होता, यदि-रहकर पेट न बनाता।” इन्हीं विचारों में समय ही टुकड़े-टुकड़े कोतवाल साहब ठीक ११ बजे गवाही देने के लिए दबा चल दिए ।

२२