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बिखरे मोती]

बिखरे मोती] -[४] . लाठी चार्ज का हुक्म देने के बाद ही मजिस्ट्रटे राय साहेब कुन्दनलाल जी को बड़े साहब का एक अर्जेन्ट रुका मिला। साहब ने उन्हें फोरन वंगले पर बुलाया था । इधर लाठी चार्ज हो ही रहा था कि उधर वे मोटर पर सवार हो बड़े साहब के बंगले पहुँचे । काम की बातों के समाप्त हो जाने पर, उन्हें लाठी चार्ज कराने के लिए धन्यवाद देते हुए, बड़े साहव ने इस बात का भी आश्वा- सन दिया कि राय वहादुरी के लिए उनकी शिफारिस अवश्य को जायगी। बड़े साहब का उपकार मानते हुए राय साहब कुन्दनलाल अपने बंगले लौटे। उन निहत्थों पर लाठो चलवाने के कारण उनको आत्मा उन्हीं को कोस रही थी। हृदय कहता था कि यह बुरा किया। लाठी चार्ज विना करवाए भी तो काम चल सकता था। आखिर सभा हो ही जाती तो अमन में क्या खलल ड़ जाता? वे लोग सभा में किसी से मारपीट करने of आए न थे। फिर मैंने हो उन्हें लाठी से टवा कर कौनसा भला काम कर डाला ? किन्तु दिमारा उसी समय रोक कर कहा- यहाँ भले-बुरे का सवाल

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